Jagannath University Research Journal

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Volume-3 Issue-I

Title : अष्टावक्र गीता का सार

Author : Rajni Sharma

Abstract :

भारत को देव भूमि कहा जाता है। इस पर अनेक देवी देवताओ योगी, विद्वान महापुरषो व ऋषि मुनिओ ने जनम लिया है। इन ऋषिओ में एक महान ऋषि हुए है अष्टावक्र। इन्होंने अष्टावक्र गीता को लिखा जो कि अद्यतीय वेदांत ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ भगवदगीता उपनिषद पुराणों ब्रहमसूत्र आदि कि समान अमूल्य ग्रन्थ है। इसमें ज्ञान वैराग्य मुक्ति जीवन समाधिस्थ योगी आदि दशाओ का विस्तार से वर्णन किया गया। अष्टावक्र ऋषि अपने पिता कि श्राप अपने पिता कि श्राप द्वारा ८ अंगो से टेढ़े-मेढ़े पैदा हुए थे, किन्तु वे बहुत हे बुद्धिमान थे। उन्होंने सम्पूर्ण ग्रंथो का पर पा लिया था। सत्यवादी अष्टावक्र ने राजा जनक को जीवन का सार्थक अर्थ समझाया गया है। संसार में सभी धर्मो का अपना महत्व है तथा सभी मानवता के लिए महनीय है, किन्तु तत्वज्ञान के दर्ष्टि से उपनिषद अप्रतिम है। उपनिषदों का प्रतिपाद्य एक हे सत तत्व अथवा ब्रहम है यधपि कथनी शैली अलग है। उनमे जगत जीवन जीवात्मा और आत्मा ( परमात्मा ) की तात्विक विवेचना और मीमांसा है और यत्र तत्र दिव्यानुभूति के उदगार है। ;
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